प्रवीण पाठमाला : अभ्यास सामग्री एवं महत्वपूर्ण पाठों का सारांश

शहरी जीवन
गाँव से एक बार लेखक अपने चाचाजी के घर दिल्ली घुमने गए . वहां गाँव और शहर के वातावरण तथा रहन सहन में लेखक को ज़मीन आसमान का अंतर दिखलाई पड़ा . शहरों की आधुनिक जीवन शैली, भीड़-भाड़, तनाव और मंहगाई से उनके चाचाजी भी काफी चिंतित थे. चाचा ने लेखक से कहा भी कि- " शहरों में नौकरी पेशा लोगों का गुजारा बड़ी कठिनाई से होता है . बिजली , पानी, मकान का किराया, फोन, अखबार का बिल और भोजन सामग्रियों के दाम बेतहाशा बढ रहे हैं जिससे जीना दूभर हो गया है. यहाँ सभी अपने-अपने में ही केन्द्रित रहते हैं और एक पडोसी दूसरे पडोसी को जानता तक नहीं." दिल्ली शहर की भाग दौड़ से भरी ज़िन्दगी देखकर लेखक को महसूस होने लगा कि इसी वज़ह से शहरी लोग तनाव में रहते हैं और अनेक बिमारियों के शिकार हो जाते हैं. घर की समस्याएं, दफ्तर का काम, बसों की भीड़, प्रदूषित हवा - ये सब शहरी जीवन को कठिन बना रहे हैं. इतनी कठिनाइयों के होते हुए भी गाँव के लोग शहरों की ओर खिंचे चले आते हैं क्योंकि रोज़गार के अवसर शहरों में ही अधिक होते हैं , परन्तु लेखक का मन वहां बिलकुल भी नहीं लगा . दो दिन बाद ही वे अपने गाँव लौट आये. शहरी जीवन यापन उन्हे रास न आया क्योंकि लेखक का मन तो गाँव में ही रमता है.

स्वामी विवेकानंद

हमारे देश में अनेक महापुरूषों ने जन्म लिया . स्वामी विवेकानंद इन्ही में से एक थे. १२ जनवरी १८६३ को मकर संक्रांति के दिन कोलकाता के प्रसिद्द वकील श्री विश्वनाथ दत्त के घर में उनका जन्म हुआ . बचपन में सभी उन्हें प्यार से नरेन कहते थे. वे बचपन से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे और उनकी स्मरण शक्ति बहुत तीव्र थी. स्वामी रामकृष्ण के उपदेशों से वे बहुत प्रभावित हुए उनका विवेक जागृत हो गया और लोग उन्हें स्वामी विवेकानंद कहने लगे. ११ सितम्बर १८९३ को शिकागो ( अमेरिका) में आयोजित विश्व धर्म महासभा में जब उन्होंने अपने भाषण की शुरुवात " अमेरिकावासी बहनों और भाइयों" के संबोधन से किया तो सारा हाल तालियों से गूँज उठा. हमारे देश में स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को "युवक दिवस" के रूप में मनाया जाता है. यही हमारी स्वामी विवेकानंदजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है.

भूमंडलीकरण

भूमंडलीकरण एक ऐसी भावना है, जिससे आज डरना या बचना ठीक नहीं होगा. आज की दुनिया में कोई भी देश केवल अपने आप में सिमटकर नहीं रह सकता. भारत जब स्वतंत्र हुआ तब हम आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछडे हुए थे. स्वतंत्रता के बाद हमारे उद्योगों को सभी प्रकार की सरकारी सहायता दी गई , लेकिन फिर भी हमारे देश की आर्थिक स्थिति में विशेष सुधार नहीं आया था पर जब से भूमंडलीकरण हुआ है उसके प्रभाव से उतनी प्रगति हुई जितनी की स्वतंत्रता के बाद की आधी सदी में भी नहीं हुई. अब देश का चंहुमुखी विकास हो रहा है . भूमंडलीकरण के प्रभाव स्वरुप भारत का दूसरे विकसित देशों से जितना विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में आदान प्रदान होगा उतना ही हमें फायदा होगा . जितने नए - नए उद्योग लगेंगे उतने नए - नए रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे . जितना उत्पादन बढेगा उतना निर्यात भी बढेगा और देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. आयात निर्यात पर नियंत्रण जितना काम होगा उतना देश के उद्योगों को लाभ होगा . जहाँ से कच्चा माल सस्ता मिलेगा वहां से खरीदकर उससे बने उत्पाद की बिक्री से लाभ ज्यादा होगा. इसप्रकार भूमंडलीकरण के अनेक लाभ हैं.

श्रीनगर

कश्मीर की सुन्दर घाटी में झेलम नदी के तट पर बसा हुआ सुन्दर शहर है- श्रीनगर. विशाल डल झील श्रीनगर का प्रमुख आकर्षण है. झील में एक से बढकर एक सुन्दर हॉउस बोट हैं. इनमें पर्यटकों को घर जैसी सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं. छोटे आकार की लम्बी नावों को शिकारा कहते हैं. व्यापारी इनमें चीजें लाकर बेचते हैं और पर्यटक नौका - विहार का आनंद लेते हैं. रंग-विरंगे फूल,सब्जियां और तरह-तरह की चीजो से लदे हुए शिकारे डल झील पर तैरते रहते हैं. झील में तैरते हुए शिकारे बहुत सुन्दर लगते हैं. श्रीनगर न केवल पर्यटन के लिए बल्कि हस्तशिल्प के लिए भी विख्यात है. यह शहर लकडी तथा बर्तनों पर नक्काशी, कपडों पर कश्मीरी कढाई और कालीन की बुनाई के लिए भी मशहूर है. यहाँ की पश्मीना और तोशा की शालें विश्वविख्यात हैं. यहाँ सर्दी भी बहुत पड़ती है, कभी- कभी तापमान शून्य से नीचे चला जाता है. यहाँ के लोग मेहनती और मिलनसार हैं. कश्मीर घाटी की अनुपम सुन्दरता पर मोहित होकर फिरदौस ने कहा था- " अगर इस धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है , यहीं है."

अमर – आश्रम

किसी गाँव में एक धनी आदमी रहता था. उसके घर में एक पुत्र ने जन्म लिया. उसने उसका नाम "अमर" रखा. उसकी इच्छा थी कि पुत्र बड़ा होकर अच्छा काम करे और अपना नाम अमर करे. अमर को जब अपने पिता की इस इच्छा का ज्ञान हुआ तब वह सोचने लगा कि क्यों न कोई ऐसा काम करे जिससे सभी उसके नाम को जानने लगे. अपने नाम को अमर करने के लिए उसने अनेक उपाय किये. कभी रेत पर अपना नाम लिखा तो कभी वृक्ष की छाल पर . कभी शिला पर तो कभी दीवार पर. लेकिन उसका कोई भी उपाय कारगर नहीं हुआ , अंततः वह गाँव में आये एक संत के पास पहुंचा
और अपनी इच्छा बताई. संत ने मधुर वाणी में प्यार से कहा - " बच्चा , अपना नाम अमर करना है तो उसे मिट्टी या पत्थर पर नहीं , वरन उसे लोगों के दिल पर लिखो. जाओ , कोई ऐसा काम करो जिससे लोग तुम्हे याद रखे." यह सुनते ही उसे लगा कि अपने नाम को अमर करने के लिए लोगों की सेवा और भलाई करना ही सही रास्ता है. फिर उसने जन सेवा का बीड़ा उठाया . इसके लिए उसने अपने घर को आश्रम में बदल दिया और पूरा जीवन जनसेवा में लगा दिया . उसका घर अमर - आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हो गया. इसप्रकार संत के बताये मार्ग पर चलकर उसका अपना नाम अमर करने का सपना पूरा हो गया.

प्राकृतिक आपदाएं

पर्यावरण असंतुलन और धरती की आंतरिक हलचल जब अपने भयानक रूप में प्रकट होती है तब हम इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं. जब बाढ़, सूखा, भूकंप, ज्वालामुखी तथा तूफ़ान आदि प्राकृतिक आपदा आती है तब जानमाल की बहुत हानि होती है. यातायात , संचार सेवाएँ ठप्प हो जाती हैं मकान गिर जाते हैं, मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी अपनी जान गंवानी पड़ती है. थोडी सी सावधानी बरतकर इन प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य अपनी जान बचा सकता है जैसे- जंगलों की कटाई न कर बाढ़ के खतरे को कम किया जा सकता है, भूकंप से बचाव के लिए भूकंपरोधी या लकडी से बने घरों का इस्तेमाल किया जा सकता है. सुनामी आदि से बचाव के लिए तटों पर सघन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए. जहाँ - जहाँ प्राकृतिक आपदाएं आती हैं वहां - वहां सरकार तथा विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों को भी आपदा - प्रबंधन के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए. जहाँ एक और प्रकृति मनुष्य का मित्र है वहीँ दूसरी ओर अपने रौद्र रूप में शत्रु भी है. हमें चाहिए कि हम ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए सदा सावधान रहें.

यूनीसेफ़

संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन विश्व भर में बच्चों के हितों के लिए कार्य करने वाली संस्था को यूनीसेफ़ अर्थात संयुक्त राष्ट्र बाल निधि के नाम से जाना जाता है. हमारे देश में यह संस्था सन १९४९ से कार्य कर रही है. यह संस्था विश्व भर के बाल संगठनों के लिए कार्य करती है. यह संस्था बच्चों के विकास के लिए प्रयासरत है. विश्व के अधिकांश देश अपने बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए यूनीसेफ़ को अपनी सहमति दे चुके हैं. बच्चों में लिंग भेद को समाप्त कर यूनीसेफ़ उनके अच्छे स्वास्थ के लिए संतुलित आहार सुनिश्चित करवाती है. यह विभिन्न देशों की सरकारों से बच्चों को साफ - सफाई, पेयजल, बुनियादी शिक्षा आदि की सुविधाएँ उपलब्ध करवाती हैं. इसके साथ-साथ बच्चों को शोषण एवं उत्पीडन से मुक्त करवाती है. यह संस्था स्वेच्छिक संस्थाओं के सहयोग से आम जनता को जागरूक करने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार करती है. यूनीसेफ़ बच्चों में दृष्टिहीनता , पोलियो निवारण के साथ घेंघा रोग, काली खांसी, गलघोंटू से बचाव के लिए विटामिन ए, आयोडीन तथा अन्य दवाइयाँ भी उपलब्ध करवाती हैं. इसप्रकार यूनीसेफ़ ऐसी संस्था है जो विश्व के सभी बच्चों की भलाई के लिए कार्यरत है. यह अपने कार्यक्रमों को विश्व की सरकारी, स्वेच्छिक संस्थाओं और व्यक्तियों के माध्यम से लागू करवाती है.


सपनों का महल

शिवनाथ बाबू मुंबई में अकेले रहते थे I उनका परिवार नासिक में रहता था, जहाँ वे अपना एक मकान बना रहे थे , ताकि सेवानिवृति के बाद परिवार के साथ शांति से जीवन यापन कर सके I मकान बनवाने के लिए वे प्रायः अवकाश लेकर नासिक चले जाया करते थे I नासिक आने पर पत्नी जब उनसे कहीं घुमाने ले जाने की बात कहती तब वे जवाब देते कि बस कुछ दिनों की तपस्या और है बाद में तो हम अपनी इच्छानुसार समय बितायेंगें ही I आखिर एक दिन शिवनाथ बाबू सेवा निवृत होकर अपने घर नासिक पहुँच गए I घर की व्यवस्था उन्होंने अपने हाथ में ले ली I इसी अतिउत्साह में वे कभी बच्चों को भी उपदेश देने लग जाते , जो बच्चों को बिलकुल अच्छा नहीं लगता था I शिवनाथ बाबू को लगा कि उनका यहाँ रहना किसी को अच्छा नहीं लग रहा है I अनचाहा व्यक्ति बनकर रहने की अपेक्षा मुंबई वापस जाने का विचार भी उनके मन में आया I जब उन्होंने अपनी यह इच्छा सबको बताई तो बच्चों को अपनी भूल समझ में आ गई और बच्चों ने अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और पिता से मुंबई वापस जाने का ख्याल दिल से निकाल देने का आग्रह किया I पहली बार शिवनाथ बाबू को अनुभव हुआ कि उनका सपना हकीकत में बदल गया है I

उड़ीसा की सैर

पाठ के लेखक ने एलटीसी लेकर सपरिवार जगन्नाथ पुरी के दर्शन का कार्यक्रम बनाया I वे उड़ीसा में अन्य ऐतिहासिक स्थलों को भी देखना चाहते थे I वे रेल से भुवनेश्वर गए,जहाँ से पुरी की दूरी लगभग बावन किलोमीटर है I पुरी चार धामों में से एक है I यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण बलभद्र सुभद्रा की काठ की मूर्तियाँ स्थापित हैं I पुरी में अनेक मंदिर होने के कारण इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है I लेखक व उनके परिवार ने पुरी के समुद्र तट पर जाकर सूर्योदय का अद्भूत नज़ारा देखा एवं सागर स्नान का भी आनंद उठाया I दो दिन पुरी में बिताकर वे राज्य पर्यटन निगम की बस से कोणार्क गए I कोणार्क का सूर्यमंदिर हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है I कोणार्क के बाद वे ऐतिहासिक कलिंग का रणक्षेत्र भी देखने गए I वापसी में भुवनेश्वर व नंदनकानन भी गए I लेखक ने चिल्का झील में जाकर नौकायान का भी आनंद उठाया I गोता लगते डाल्फिनों को देखकर उनके बच्चे बेहद खुश हुए I उड़ीसा की यह सैर लेखक को हमेशा याद रहेगी I

टिप्पणियाँ

  1. इस ब्लॉग में प्रकाशित आलेख और उपलब्ध सामग्री आपको कितनी उपयोगी लगी तथा इसमें आप और क्या परिवर्तन चाहतें हैं इस सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया मुझे (अर्थात इस ब्लॉग के लेखक को ) अवश्य भेजें. जिन्होंने पहले अपनी प्रतिक्रियाएं भेजीं हैं उनको हार्दिक आभार प्रकट करते हुए उनकी भेजी गईं प्रतिक्रियाएं प्रकाशित भी की जा रहीं हैं.
    विश्वजीत मजूमदार

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

यूनिकोड और हिन्दी शब्द संसाधन (Unicode & Hindi Word Processor)

ऑनलाइन हिन्दी प्रशिक्षण हेतु लीला प्रबोध , प्रवीण एवं प्राज्ञ के नए पाठ्यक्रम

ई महाशब्दकोश E-Mahashabdakosh