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हिंदी की प्रगति में हिंदीतर भाषियों का योगदान

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डॉ. रामविलास शर्मा ने अपनी कृति "भाषा और समाज" में लिखा है कि - " तुर्कों और मुसलमानों ने यहाँ फारसी को राजभाषा न बनाया होता तो यह अधिकार आमिर खुसरो के समय और उससे भी पहले हिंदी को मिलता. " महर्षि अरविन्द का भी मानना था कि भाषा भेद के कारण देश कि एकता में बाधा नहीं पड़ेगी . सब लोग अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अपनाकर इस भेद को नष्ट कर देंगे." सांस्कृतिक नवजागरण हेतु राजा राममोहन राय ने १८२२ इ. में "जामेज़हाँ" नामक एक साप्ताहिक पत्रिका हिंदी (हिन्दुस्तानी ) में निकला था . १८२९ में उन्होंने पुनः एक पत्रिका " बंगदूत" नाम से द्वारिका नाथ ठाकुर के साथ मिलकर निकाली, जो हिंदी के अतिरिक्त बांगला, अंग्रेजी,फारसी में भी छपता था. कोलकाता से ही सर्वप्रथम हिंदी की सम्पूर्ण पत्रिका "उदन्त मार्तंड" ३० मई १८२६ को श्री तरमोहन मित्र के संपादन में निकली. इसीतरह हिंदी का सर्वप्रथम दैनिक समाचार पत्र "समाचार सुधावर्षण " भी यहीं से श्री श्याम सुन्दर सेन के संपादन में निकला. तब यह हिंदी किसी पर लादी नहीं गयी थी ब