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दिसंबर 9, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या बनाने आए थे क्या बना बैठे

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 क्या बनाने आए थे क्या बना बैठे ,  कहीं मंदिर तो कहीं मस्जिद बना बैठे ।     हमसे तो जात अच्छी है परिंदों की , कभी मंदिर पर जा बैठे तो कभी मस्जिद पर जा बैठे ।