Me, Borishailla : The Epic Saga Of The Rise Of Bangladesh Written by Dr. Mahua Maji
एक पठनीय कालजयी
उपन्यास
डॉ॰ महुआ माजी कृत बांग्लादेश के अभ्युदय की महागाथा
हाल ही में मुझे डॉ॰ महुआ
माजी कृत “मैं बोरिशाइल्ला” उपन्यास पढ़ने को मिला। युवा लेखिका ने अपने विस्तृत
शोध और पारिवारिक स्रोतों से मिली जानकारी को अपनी लेखकीय कल्पना शक्ति से कथारूप
देकर कलमबद्ध कर इसे “बांग्लादेश के अभ्युदय की महागाथा” की संज्ञा दी है। इसकी
प्रामाणिकता असंदिग्ध है। उन्नीस सौ सैंतालीस से लेकर सत्तर के दशक तक बांग्लादेश के लाखों बेघर हुए
बंगाली जो युद्धकाल में पलायन कर भारत में आ बसे थे, उनकी
संततियाँ आज भी उस अमानवीय यातना को भूल नहीं पाई है। जिन लोगों ने उस पीड़ा को
साक्षात भोगा है, उनकी जुबान को ही लेखिका ने कथा नायक केष्टो
घोष के माध्यम से आकार दिया है। बंगभंग पर हिन्दी में इससे पहले इतने व्यापक फ़लक
पर किसी ने रचनाकार ने कोई उपन्यास लिखा हो ऐसी मेरी जानकारी में तो कम से कम नहीं
है। हाँ, यशपाल के “झूठा-सच” नामक वृहदाकार उपन्यास में अवश्य
स्वाधीनता आंदोलन और भारत-पाक विभाजन की त्रासद घटना को अत्यंत मार्मिक और प्रामाणिक रूप से
प्रस्तुत किया गया है। चूंकि यशपाल स्वयं तत्कालीन सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन के
एक अभिन्न अंग थे और वामपंथी विचारधारा के पैरोकार थे, इसलिए
उनकी लेखनी की धार स्वाभाविक रूप से तेज़ थी। पर महुआ माजी ने न तो उस क्षण को जिया
है , न भोगा है, न ही देखा है। मुझे आश्चर्य इस बात पर भी है
कि झारखंड के रांची प्रांत मे रहकर भी उन्होने बांग्लादेश (तत्समय पूर्वी बंगाल)
की प्राकृतिक परिस्थितियों का इतना विशद और जीवंत वर्णन कैसे किया है। बदलती ऋतुओं
के साथ साथ शस्य श्यामला बंगदेश की ग्रामीण पृष्ठभूमि और उसके नैसर्गिक सौंदर्य का
ऐसा अद्भुत बारहमासा विवरण किसी चमत्कार से कम नहीं। उल्लेखनीय है कि लेखिका का यह
पहला उपन्यास होते हुए भी विश्वस्तर पर चर्चित,प्रशंसित
और पुरस्कृत हुआ है। जिसमें अंतराष्ट्रीय कथा यू॰के॰ सम्मान(2007),अखिल
भारतीय वीर सिंह देव सम्मान(2010),विश्व हिन्दी सेवा सम्मान (2010), तथा
“झारखंड रत्न” सम्मान आदि शामिल है, संभवतः इतनी लोकप्रियता उनके द्वारा रचित दूसरे
उपन्यास “मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ” को भी नहीं मिली होगी । उम्मीद है अमृता प्रीतम,मन्नू
भण्डारी,ममता कालिया,उषा प्रियंबदा.......... आदि
महिला कथाकारों की लंबी सूची में अब महुआ माजी का नाम भी आदर से लिया जाएगा।
डॉ॰ महुआ माजी कृत बांग्लादेश के अभ्युदय की महागाथा
मैं बोरिशाइल्ला
हाल ही में मुझे डॉ॰ महुआ
माजी कृत “मैं बोरिशाइल्ला” उपन्यास पढ़ने को मिला। युवा लेखिका ने अपने विस्तृत
शोध और पारिवारिक स्रोतों से मिली जानकारी को अपनी लेखकीय कल्पना शक्ति से कथारूप
देकर कलमबद्ध कर इसे “बांग्लादेश के अभ्युदय की महागाथा” की संज्ञा दी है। इसकी
प्रामाणिकता असंदिग्ध है। उन्नीस सौ सैंतालीस से लेकर सत्तर के दशक तक बांग्लादेश के लाखों बेघर हुए
बंगाली जो युद्धकाल में पलायन कर भारत में आ बसे थे, उनकी
संततियाँ आज भी उस अमानवीय यातना को भूल नहीं पाई है। जिन लोगों ने उस पीड़ा को
साक्षात भोगा है, उनकी जुबान को ही लेखिका ने कथा नायक केष्टो
घोष के माध्यम से आकार दिया है। बंगभंग पर हिन्दी में इससे पहले इतने व्यापक फ़लक
पर किसी ने रचनाकार ने कोई उपन्यास लिखा हो ऐसी मेरी जानकारी में तो कम से कम नहीं
है। हाँ, यशपाल के “झूठा-सच” नामक वृहदाकार उपन्यास में अवश्य
स्वाधीनता आंदोलन और भारत-पाक विभाजन की त्रासद घटना को अत्यंत मार्मिक और प्रामाणिक रूप से
प्रस्तुत किया गया है। चूंकि यशपाल स्वयं तत्कालीन सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन के
एक अभिन्न अंग थे और वामपंथी विचारधारा के पैरोकार थे, इसलिए
उनकी लेखनी की धार स्वाभाविक रूप से तेज़ थी। पर महुआ माजी ने न तो उस क्षण को जिया
है , न भोगा है, न ही देखा है। मुझे आश्चर्य इस बात पर भी है
कि झारखंड के रांची प्रांत मे रहकर भी उन्होने बांग्लादेश (तत्समय पूर्वी बंगाल)
की प्राकृतिक परिस्थितियों का इतना विशद और जीवंत वर्णन कैसे किया है। बदलती ऋतुओं
के साथ साथ शस्य श्यामला बंगदेश की ग्रामीण पृष्ठभूमि और उसके नैसर्गिक सौंदर्य का
ऐसा अद्भुत बारहमासा विवरण किसी चमत्कार से कम नहीं। उल्लेखनीय है कि लेखिका का यह
पहला उपन्यास होते हुए भी विश्वस्तर पर चर्चित,प्रशंसित
और पुरस्कृत हुआ है। जिसमें अंतराष्ट्रीय कथा यू॰के॰ सम्मान(2007),अखिल
भारतीय वीर सिंह देव सम्मान(2010),विश्व हिन्दी सेवा सम्मान (2010), तथा
“झारखंड रत्न” सम्मान आदि शामिल है, संभवतः इतनी लोकप्रियता उनके द्वारा रचित दूसरे
उपन्यास “मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ” को भी नहीं मिली होगी । उम्मीद है अमृता प्रीतम,मन्नू
भण्डारी,ममता कालिया,उषा प्रियंबदा.......... आदि
महिला कथाकारों की लंबी सूची में अब महुआ माजी का नाम भी आदर से लिया जाएगा। 
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