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जनवरी 26, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रवीण पाठमाला : अभ्यास सामग्री एवं महत्वपूर्ण पाठों का सारांश

शहरी जीवन गाँव से एक बार लेखक अपने चाचाजी के घर दिल्ली घुमने गए . वहां गाँव और शहर के वातावरण तथा रहन सहन में लेखक को ज़मीन आसमान का अंतर दिखलाई पड़ा . शहरों की आधुनिक जीवन शैली, भीड़-भाड़, तनाव और मंहगाई से उनके चाचाजी भी काफी चिंतित थे. चाचा ने लेखक से कहा भी कि- " शहरों में नौकरी पेशा लोगों का गुजारा बड़ी कठिनाई से होता है . बिजली , पानी, मकान का किराया, फोन, अखबार का बिल और भोजन सामग्रियों के दाम बेतहाशा बढ रहे हैं जिससे जीना दूभर हो गया है. यहाँ सभी अपने-अपने में ही केन्द्रित रहते हैं और एक पडोसी दूसरे पडोसी को जानता तक नहीं." दिल्ली शहर की भाग दौड़ से भरी ज़िन्दगी देखकर लेखक को महसूस होने लगा कि इसी वज़ह से शहरी लोग तनाव में रहते हैं और अनेक बिमारियों के शिकार हो जाते हैं. घर की समस्याएं, दफ्तर का काम, बसों की भीड़, प्रदूषित हवा - ये सब शहरी जीवन को कठिन बना रहे हैं. इतनी कठिनाइयों के होते हुए भी गाँव के लोग शहरों की ओर खिंचे चले आते हैं क्योंकि रोज़गार के अवसर शहरों में ही अधिक होते हैं , परन्तु लेखक का मन वहां बिलकुल भी नहीं लगा . दो दिन बाद ही वे अपने ग...