भारत में नागर विमानन के सौ वर्ष
आदिम युग से मनुष्य लगातार अपने
में परामानवीय शक्तियों के विकास की
इच्छा लेकर नित नवीन प्रयोग करता रहा
है। जल में चलने की अभिलाषा ने डोंगी से नाव
और नाव से जलजहाज का विकास
किया। खुले आकाश में उड़ते पंछियों को
देखकर इंसान को भी उड़ने की हसरत ज़रूर हुई
होगी तभी तो राइट बंधुओं ने उड़ने की कोशिश में अपनी जान को खतरे में डाला होगा। प्राचीन
ग्रन्थों में भी हम इस बात
का उल्लेख पाते हैं कि देवताओं और
असुरों के पास उड़ने की नैसर्गिक शक्ति थी। तुलसीदासकृत
“श्रीरामचरित मानस”
में भी इस बात का उल्लेख है कि लंका नरेश रावण सीता
माता का अपहरण कर
अपने पुष्पक विमान
में बिठाकर आकाश मार्ग से लंका ले जाता है। भगवान श्रीराम लंका विजय कर जब सीताजी
को लेकर इसी पुष्पक विमान से अयोध्या लौटेते
हैं तो- आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ भूमि बिमान।। (4क/उत्तरकाण्ड)
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ भूमि बिमान।। (4क/उत्तरकाण्ड)
(भावार्थ-
कृपासागर भगवान् श्रीरामचन्द्रजी ने सब
लोगों को आते देखा,
तो उन्होने विमान को नगर के समीप उतरने को
प्रेरित किया। तब वह विमान पृथ्वी पर उतरा।)
इसीतरह-उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।। (4ख/उत्तरकाण्ड)
(भावार्थ- विमान से उतरकर प्रभु ने पुष्पक विमान से कहा
कि तुम अब कुबेर के पास
जाओ। श्रीरामजी की प्रेरणा से वाहक चला ।
उसे, [अपने स्वामी के पास जाने का] हर्ष है और प्रभु श्रीरामचन्द्रजी से अलग होने का अत्यन्त दुःख भी है।)
इस दृष्टांत से यह भी
स्पष्ट हो जाता है कि पुष्पक विमान आज के अत्याधुनिक मानवरहित स्वचालित विमानो या
ड्रोन जैसे रेडार संचालित यानों की तरह ही था जो मौखिक आदेशों या केवल हाथ के इशारों से नियंत्रित किया
जा सकता था।
अगर इन पौराणिक
कथाओं की सत्यता पर किसी को सदेह भी हो तो भी इस बात पर किसी को आपत्ति नहीं होनी
चाहिए कि अगर यह महज कवि की कल्पना भी हो तो भी ऐसी इच्छाओं ने ही तो हमें आकाश में
उड़ने की प्रेरणा दी
है। कहा भी गया है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है।
·
नागर विमानन की
आवश्यकता और महत्व
परिवहन के क्षेत्र में नागर विमानन या हवाई यात्रा का अपना एक अलग
महत्व है क्योंकि परिवाहन के अन्य साधन यथा घोड़ा,खच्चर,ऊंट,बैलगाड़ी,साइकिल,जीप,बस,कार,रेल,डोंगी,नाव,स्टीमर,जलजहाज या पनडुब्बी जैसे परंपरागत या
आधुनिक साधन हों या मेट्रो और बुलेट ट्रेनों की भांति अत्याधुनिक माध्यम हों,इन सबमें हेलिकॉप्टर
और हवाई जहाज का स्थान सर्वोपरि है। केवल नभचर
प्राणी ही आकाश मार्ग का प्रयोग करते हैं । वे भी ज़्यादा तेज़ गति से लगातार उतनी
ऊंची उड़ान नहीं भर सकते जितना कोई वायुयान भर सकता है। यह नदी,पहाड़,पर्वत और समुद्र के प्राकृतिक बंधनों से मुक्त होने तथा भूकंप,भूस्खलन,बाढ़
आदि आपदाओं से अप्रभावित रहने के कारण
स्वाभाविक रूप से आवागमन का सर्वोत्तम विकल्प है। दिनोंदिन
बढ़ती आबादी ने
सड़कों पर गाड़ियों की रफ्तार पर अंकुश लगा रखा है और नए हाइवे,एक्सप्रेस हाइवे या फ़्लाइओवर भी इस समस्या से निजात दिलाने में नाकाफी साबित हो रहे हैं।
जलमार्ग को इनका विकल्प भी नहीं बनाया जा सकता क्योंकि
इसकी अपनी सीमाएं हैं। कुलमिलाकर
निष्कर्ष यही निकलता है कि नागर विमानन आज हमारी
ज़रूरत ही नहीं अनिवार्यता भी बन गई है।
·
भारत में नागर विमानन
का इतिहास
हमारे देश में नागर विमानन का इतिहास करीब 100 वर्ष पुराना है।
सर्वप्रथम 1910 में पटियाला के तत्कालीन युवा महाराज भूपिंदर
सिंह ने अपने चीफ
इंजीनियर को यूरोप भेजकर अपने उपयोग के लिए एक विमान
खरीदवाया था ,जो संभवतः भारत ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महादीप में किसी भी
व्यक्ति द्वारा खरीदा गया पहला निजी विमान था। उसके अगले ही वर्ष अर्थात 1911 में
18 फरवरी को हेनरी पिकेट
ने इलाहाबाद से नैनी तक व्यावसायिक उड़ान भरी जो
भारत की पहली घरेलू व्यापारिक उड़ान थी। इसतरह यह
भारत में नागर विमानन का शताब्दी वर्ष है।
·
भारत में नागर विमानन
का क्रमिक विस्तार
भारत मे
नागर विमानन के इन सौ सालों को अगर
कालक्रमानुसार अवलोकन करें तो पाएंगे कि धीरे धीरे ही सही पर हमने क्रमशः नागर विमानन के क्षेत्र
में अपनी स्थिति मजबूत की है। 1927 में हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवा से जुड़ा जब
ब्रिटेन की इंपीरियल एयरवेज़ ने अपनी हवाई सेवा का विस्तार करते हुए
काइरो-बसरा-कराची होते हुए जोधपुर –दिल्ली तक विमान सेवा उपलब्ध कराई। एक प्रकार
से भारत में पहली घरेलू हवाई सेवा देने वाली कंपनी भी यही विदेशी संस्था थी। 1932 में युगपुरुष जे॰आर॰डी॰ टाटा ने पहली अधिसूचित एयरलाइन् “टाटा एयरलाइन्स” की स्थापना की। भारत के नागर विमानन के इतिहास में यह एक
क्रांतिकारी कदम था। “टाटा एयरलाइन्स” की पहली उड़ान उन्होने स्वयं ही भरी और कराची
से विमान उड़ाकर अहमदाबाद होते हुए उसे बंबई
(अब मुंबई) लेकर आए। टाटा एयरलाइन्स की कमाई का मुख्य जरिया तब एयरमेल वाहक के रूप
में ही था क्योंकि हवाई यात्रा अत्यधिक ख़र्चीली होती थी। फिर भी टाटा एयरलाइन्स ने शुरुवाती एक साल में ही 1.6 मील की कुल उड़ान भरी,10.71 टन की माल ढुलाई की
तथा 155 यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाया। मुंबई से त्रिवेन्द्रम तक लंबी
दूरी की हवाई सुविधा प्रदान करने वाली यही पहली देशी कंपनी थी। ब्रिटिश संस्था से
पहला भारतीय पायलट लाइसेन्स पाने
वाले व्यक्ति भी और कोई नहीं बल्कि जे॰आर॰डी॰ टाटा ही थे।
1945 में “डेक्कन एयरवेज़” के रूप में हैदराबाद
के निज़ाम ने “टाटा
संस”
की एक तिहाई भागीदारी के साथ अपनी एयरलाइंस सेवा शुरू
की,जो टाटा एयरलाइन्स के बाद भारत की दूसरी निजी कंपनी थी। अपने 12 जहाज़ी बेड़ों के
साथ जुलाई 1946 में “डेक्कन एयरवेज़” ने हैदराबाद प्रांत में अपनी पहली उड़ान भरी। पहली महिला
कमर्शियल पायलट प्रेम माथुर ने 1951 में इसी डेक्कन एयरवेज़ में कार्यारंभ किया था।
1947 में टाटा एयरलाइन्स का नाम बदलकर “एयर इंडिया” कार दिया गया। भारत
सरकार के साथ संयुक्त उद्यम के रूप में ` 2
करोड़ की पूंजी के साथ 8 मार्च 1948 को एक और कंपनी गठित की
गई,जिसका नाम “एयर इंडिया इंटरनेशनल
लिमिटेड”
रखा गया
। इसकी स्थापना के पीछे मकसद यह था कि भारत में भी घरेलू
उड़ानों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए विमान सेवा हो। हालांकि इस नई कंपनी के पास तब केवल तीन ही एयरक्राफ्ट थे । इसने अपनी पहली उड़ान 8 जून 1948 को भरी तथा बंबई (अब मुंबई) से काइरो और ज़िनेवा होते
हुए लंदन का सफर तय किया। विदेशी एयरपोर्ट पर किसी भारतीय कंपनी का लैंडिंग करने वाला यह पहला विमान था ! 1960 में इसने
जेट-युग में प्रवेश किया।अब इसके पास अत्याधुनिक
707-437 जेट बोइंग विमान यात्री सेवा के लिए उपलब्ध हो गए थे।
·
नागर विमानन की
चुनौतियाँ
द्वितीय विश्व युद्ध
के बाद उपजी परिस्थितियों से कई घरेलू एयरलाइंस
कंपनियाँ वित्तीय संकट के दौर से गुज़र रही थी जो नागर विमानन सेवा के लिए चिंता की बात थी । समस्याओं से निजात पाने के लिए 1950 में सरकार ने एक एयर ट्राफिक
इंक्वैरि कमिटी गठित की,जिसने सुझाव
दिया कि सभी घरेलू निजी एयरलाइंस कंपनियों का स्वेच्छिक आधार पर
राष्ट्रीयकरण कर दिया जाना चाहिए। हालांकि अनेक एयरलाइंस कंपनियां इस प्रस्ताव से
बिलकुल सहमत नहीं थी लेकिन अंततः 1953 में इन सभी घरेलू निजी एयरलाइंस कंपनियों का
राष्ट्रीयकरण करने का फैसला लिया गया । जिसके फलस्वरूप तत्कालीन 08(आठ) निजी
एयरलाइंस कंपनियों का विलय कर “इंडियन एयरलाइन्स कार्पोरेशन” की स्थापना की गई। ये आठ घरेलू एयरलाइंस कंपनियाँ थीं- 1. डेक्कन एयरवेज़
2. एयरवेज़ इंडिया 3. भारत एयरवेज़ 4॰ हिमालय एविएशन 5. कलिंगा एयरलाइन्स 6. इंडियन नेशनल एयरवेज
7. एयर इंडिया तथा 8. एयर सर्विसेज ऑफ इंडिया ।
·
नारी सशक्तिकरण में
नागर विमानन की भूमिका
घरेलू उड़ानों के लिए बनी कंपनी “इंडियन एयरलाइन्स कार्पोरेशन”के पास तब 74 डीसी -3,12 विकिंग्स,3 डीसी-4 तथा कोई छोटे एयरक्राफ्ट थे।
1956 में दुर्बा बनर्जी इंडियन एयरलाइन्स की पहली महिला पायलट बनीं। एविएशन सेक्टर में महिलाओं की
भागीदारी बढ़ाने की दिशा में इंडियन एयरलाइन्स का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1985 में कैप्टन सौदामिनी देशमुख
के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कोलकाता से सिलचर(असम) की फ्लाइट में Fokker Friendship F-27 विमान के सभी क्रू
मेम्बर महिलाएं ही थीं। सितंबर 1989 मे मुंबई –गोवा सैक्टर
में बोइंग को चलाने वाली पायलट भी
कैप्टन सौदामिनी देशमुख ही थीं तथा सभी क्रू मेम्बर भी महिलाएं ही थीं। पहली बार
किसी महिला पायलट द्वारा IC-492 जेट विमान को मुंबई –औरंगाबाद-उदयपुर रूट पर उड़ाने का कारनामा सच कर दिखाया था ,इसी
इंडियन एयरलाइन्स की 26 वर्षीया युवा
पायलट कैप्टन निवेदिता भसीन ने। उनके नाम ही एयरबस A-300 एयरक्राफ्ट की पहली भारतीय महिला चेक पायलट बनने का भी रिकॉर्ड
दर्ज़ है। इसप्रकार महिला सशक्तिकरण की दिशा मे भी नागर विमानन का भी अभिनव योगदान है।
भारत के
नागर विमानन के इतिहास में एयर इंडिया के नाम भी एक गौरवशाली
पृष्ठ है। प्रथम खाड़ी युद्ध से ठीक पहले अम्मान से
मुंबई के बीच 59 दिनों में 488 फ्लाइट चलाकर 1,11,000
(एक लाख ग्यारह हज़ार) नागरिकों को सुरक्षित भारत
लाया गया। यह विश्व कीर्तिमान गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में भी दर्ज़ है।
·
सरकार की नागर विमानन नीति
अप्रेल 1990 में
सरकार ने वैश्वविक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने,हवाई सेवाओं
का विस्तार करने तथा उड्डयन के
क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की मूल संकल्पना के साथ ओपन
स्काइ पॉलिसी लागू की । इस पॉलिसी की विशेषता यह
थी कि कोई भी देशी विदेशी निजी एयर टॅक्सी ऑपरेटर भारत के किसी भी एयरपोर्ट से उड़ान भरने या
उतरने की सुविधा
के साथ अपनी सुविधानुसार मालभाड़ा व यात्री
किराया तय करने,उड़ान का शेड्यूल बनाने आदि की छूट कुछ शर्तों के साथ पा सकता
था। अबतक यही धारणा थी कि जिन राष्ट्रों के पास नागर विमानन के लिए उपयुक्त
इनफ्रास्ट्रक्चर नहीं है वे ही अपनी विवशता के चलते ओपन स्काइ पॉलिसी
का सहारा लेते हैं। ब्रिटेन,अमेरिका,जापान,आस्ट्रेलिया जैसे कई सम्पन्न देशों में इस पॉलिसी का अस्तित्व
न होने से ऐसी धारणा बनना स्वाभाविक ही था। बहुत लोगों को इस पॉलिसी से इसलिए भी
एतराज था क्योंकि इससे देश की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा हो सकता था। पर सरकार
ने इसे जब तमाम विरोधों के बावजूद लागू किया तो परिणाम सकारात्मक ही रहे। इससे 37 वर्षों से इंडियन एयरलाइंस का नागर विमानन के क्षेत्र में बना एकाधिकार टूट गया तथा
ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस ने प्रतिस्पर्धी
कंपनी के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़
कराई । बाद में एक के बाद कई निजी एयरलाइंस ऑपरेटरों के मैदान में आ जाने से समूचा वातावरण कड़ी प्रतिस्पर्धा का
हो गया तथा यात्री किराया और यात्री सुविधाओं के बारे में उड्डयन कम्पनियाँ ज़्यादा
सचेत हो गईं।
01 अप्रेल 1995 को सरकार ने एक और पहल की। इस
तिथि को इंटरनेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और नेशनल एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया
को मिलाकर “एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया” का गठन किया गया। तब से इसी प्राधिकरण के पास विमानपत्तनों की
देखरेख ,ढांचागत सुधार आदि का जिम्मा है। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अधीन वर्तमान में
122 एयरपोर्ट हैं ,जिनमें से 61 प्रचालन में हैं । इनमें से 11 अंतर्राष्ट्रीय ,94 घरेलू तथा 27 डिफेंस
के सिविल एंक्लेव हैं।(आंकड़ों में अंतर हो सकता है।) टियर -2 तथा
टियर-3 के कुछ शहरों
में अगले कुछ वर्षों में और भी नए एयरपोर्ट
बनाए जा रहे हैं जिससे नागर विमानन का विस्तार दूर दराज़ के इलाकों तक हो सकेगा।
·
भारत में नागर विमानन
का भविष्य -
काफी वर्षों तक हवाई
यात्रा भारतियों के लिए एक स्वप्न जैसा ही था। हवाई यात्रा करने वालों की समाज में
एक विशिष्ट पहचान थी। इसे विलासिता और वैभव का प्रतीक माना जाता था। विमान में सवार होने वाले केवल
धनकुबेर,बड़े नौकरशाह और राजनेता की
आवभगत के लिए ही “महाराजा” के सिर झुके और हाथ स्वागत में फैले हुए होते थे। साधारण जन
तो आकाश में उड़ते विमान को ही कौतूहल के साथ देख कर प्रसन्न हो लेते थे । पर अब
ऐसी बात नहीं रही। लो-कास्ट
एयरलाइंस या बजट कैरियर ने मध्यम आय वर्गीय लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है। पब्लिक और प्राइवेट ऑपरेटरों
में यदि स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक भावना बनी रहे तो आने वाले दिनों में विमान की सवारी और भी आकर्षक हो सकती
है। हालांकि एविएशन फ्युल की बढ़ती कीमतें,खाड़ी देशों में
अशांति,राजनैतिक अस्थिरता,आए दिन वेतन-भत्तों आदि को लेकर विमानन कर्मचारियों
और पायलटों के हड़ताल,रुपये और डॉलर की कीमतों में अंतर से एयरलाइंस कंपनियों का
वित्तीय घाटा बढ़ना तथा आतंकवादी हमलों की बढ़ती आशंका सहित परोक्ष
अपरोक्ष अनेक कारणों से यह सेक्टर अभी भी काफी
समस्याओं से जूझ रहा है,लेकिन
विगत एक सौ वर्षों का इसका स्वर्णिम इतिहास हमें यह विश्वास दिलाता है कि
चुनौतियाँ चाहे जितनी
भी कितनी भी कठिन क्यों न हों,
भारत में नागर विमानन का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें