श्री गुरूवै नमः गुमनामी के अंधेरे में था पहचान बना दिया दुनिया के गम से मुझे अनजान बना दिया उनकी ऐसी कृपा हुई गुरू ने मुझे एक अच्छा इंसान बना दिया .............................. हम साक्षर न होते तो किताबें कौन पढ़ता आपके खिले चेहरे को कमल कौन कहता यह तो करिश्मा है शिक्षक दिवस का व रना पत्थर के मकबरे को ताजमहल कौन कहता ...........? गुरू ब्रम्हा , गुरू विष्णु , गुरू देवो महेश्वरा गुरू साक्षात परम्ब्रम्ह तस्मय श्री गुरूवनमः (नोट- उक्त सुंदर पदयांश इंटरनेट के किसी साइट से डाउनलोड कर मेरे एक पूर्व प्रशिक्षार्थी श्री अमर कुमार शर्मा ने शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर मुझे समर्पित किया है, मैं उनका आभार प्रकट करते हुए आंशिक संशोधन के साथ इसे मैं पुनः आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। उस अनाम कवि को भी साधुवाद जिन्...