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असम की बराक घाटी में मेरे चार वर्ष

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मूलतः मैं छत्तीसगढ़ प्रदेश की राजधानी रायपुर में पला बढा हूँ , इसलिए जब गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग में हिंदी प्राध्यापक के रूप में चयन के बाद सुदूर असम की बराक घाटी में स्थित सिलचर शहर में कार्यभार सँभालने का फरमान मिला तो घरवालों के लिए वह परेशानी का सबब बन गया . बहुतों ने सलाह दी कि मुझे उतनी दूर एक अशांत प्रदेश के एक अनजान शहर में जाकर नौकरी करने की कोई ज़रूरत ही नहीं है. दरअसल रोजाना अख़बारों में जिन आतंकवादी गतिविधियों की खबरें सुर्खियाँ बन कर छपती हैं , वे उन्हें मेरी सलामती के लिए फिक्रमंद होने के लिए काफी थीं . पर हिंदी के प्रति मेरा अत्यंत लगाव और एक नए प्रदेश को देखने जानने की उत्कट अभिलाषा कोई भी तर्क या सलाह को मानने के लिए कहाँ तैयार होती ? सो एक तरह से बागी होकर मै अपने मिशन पर निकल पड़ा , पिता ने मेरी भावनाओ को समझा और मेरे साथ चल पड़े . यह चार दिनों की लम्बी ट्रेन यात्रा थी . रेलपथ से गुवाहाटी से शिलचर की दूरी करीब ४०० किलोमीटर है. पर लामडिंग स्टेशन तक ही ब्राडगेज लाइन है. लामडिंग से शिलचर की दूरी केवल २१५ किलोमीटर हैपहाड़ी रास्ता होने के कारण पता चला कि आगे की यात्रा म...

हिंदी की प्रगति में हिंदीतर भाषियों का योगदान

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डॉ. रामविलास शर्मा ने अपनी कृति "भाषा और समाज" में लिखा है कि - " तुर्कों और मुसलमानों ने यहाँ फारसी को राजभाषा न बनाया होता तो यह अधिकार आमिर खुसरो के समय और उससे भी पहले हिंदी को मिलता. " महर्षि अरविन्द का भी मानना था कि भाषा भेद के कारण देश कि एकता में बाधा नहीं पड़ेगी . सब लोग अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में अपनाकर इस भेद को नष्ट कर देंगे." सांस्कृतिक नवजागरण हेतु राजा राममोहन राय ने १८२२ इ. में "जामेज़हाँ" नामक एक साप्ताहिक पत्रिका हिंदी (हिन्दुस्तानी ) में निकला था . १८२९ में उन्होंने पुनः एक पत्रिका " बंगदूत" नाम से द्वारिका नाथ ठाकुर के साथ मिलकर निकाली, जो हिंदी के अतिरिक्त बांगला, अंग्रेजी,फारसी में भी छपता था. कोलकाता से ही सर्वप्रथम हिंदी की सम्पूर्ण पत्रिका "उदन्त मार्तंड" ३० मई १८२६ को श्री तरमोहन मित्र के संपादन में निकली. इसीतरह हिंदी का सर्वप्रथम दैनिक समाचार पत्र "समाचार सुधावर्षण " भी यहीं से श्री श्याम सुन्दर सेन के संपादन में निकला. तब यह हिंदी किसी पर लादी नहीं गयी थी ब...

हिन्दी ही राजभाषा क्यों ?

हिन्दी ही राजभाषा क्यों ? यह सवाल प्रायः सभी हिंदीतर भाषियों द्वारा लगातार उठाया जाता रहा है , लेकिन जिन्हें " हिन्दी राजभाषा कैसे और क्यों बनी " इस सम्बन्ध में थोडी बहुत भी जानकारी है तो उन्हें इस प्रश्न का उत्तर देने में कोई भी परेशानी नही होनी चाहिए । दरअसल सिर्फ़ राजभाषा ही नही बल्कि हमारे संविधान में शामिल सभी सभी पहलुयों पर व्यापक और गहन चर्चा के लिए संविधान सभा ने अलग अलग तारीख तय किया था । तत्कालीन सदस्यों ने संविधान निर्माण की प्रारूप समिति में शामिल होकर संविधान निर्माण के लिए अपनी - अपनी सेवाएँ भी दी थी , इसी क्रम में डॉ गोपाल स्वामी आयंगर की अध्यक्षता में बनी संविधान निर्माण उप समिति ने राजभाषा के प्रश्न पर विचार के लिए १२ से १४ सितम्बर १९४९ का दिन तय किया। यह भी कम रोचक प्रश्न नही है कि संविधान सभा ने राजभाषा चयन का मुद्दे पर सबसे आख़िर में क्यों लिया ? शायद दूरदर्शी संविधान निर्माताओं को यह भय था कि अगर भाषा के नाम पर ही लोग अश्हिनु होकर आपस में लड़ने लग जायें तो शायद संविधान ही न बन पायेगा इसलिए अन्य जरुरी मुद्दों पर सहमति बन जाने के बाद इन्होने भाषा के प्रश्न ...